Wednesday, February 11, 2009

थोड़े मजाक के मूड में भी, वाटर मेनेजमेंट

हर व्यक्ति की अनिवार्य जरूरत है पानी । वाटर मेनेजमेंट की आश्यकता को हमने देखते हुए सुविधापूर्ण बनाने के उपक्रम किए और घर घर में नल के मध्यम से पानी पहुचाया । आज पानी फ़िर से अपनी कमी के मद्देनजर अपने प्रबंधन के तरीको की गुजारिश करने लगा है । भीषण गर्मी के दौर में प्याऊ खोली जाती थी और यह सभी इंसानों की प्यास बुझाने से जुडा हमारा प्रबंध हुआ करता था ।
इंसान की व्यावसायिक बुद्धि की तीक्षनता ने पानी की जरूरतों को उद्योग बना डाला । आज पानी की बोतलें बाज़ार में बेचीं जा रही है जो हमारी व्यावसायिक चतुराई की परिचायक मानी जा रही है ।
जल संकट का दौर पानी के विक्रय को बढाता है बस यही रोचक बात है । इस विचार भर ने पानी बेचकर पैसा कमाने वाले बुद्धिजीवियों को नया शगूफा दे दिया है । किन कारणों से पानी ख़त्म किया जा सकता है इसकी बुनियाद ढूंढ कर पानी जीवकों ने संकट पैदा किए जाने की योजनायें बना डाली हैं ।
वोट के लिए भी पानी की जरूरत होती है और जल संकट का दौर हमारे नगरीय नेताओं के सेवा भावमें वृद्धी करता है इस कारण से पानी की उपलब्ध मात्रा के बावजूद इसकी कमी का बावेला खडा करना हमने वाटर मेनेजमेंट की टेक्निक से सीखा है ।
जल संकट नया दौर बरसात की कमी की वजह से खडा होगा लेकिन सतह पर पानी बनाए रखने के कुप्रबंध से जेबें भारी होंगी यह भी एक महत्वपूर्ण विचार इस तरह की कार्य योजनाये बनाने में मदद करती है ताकि दोष अपने सर पर न आए और अपना काम चल निकले ।
पिछले दिनों से तालाब गहरीकरण आदि अनेकों योजनाये बनी फ़िर भी आज किसान पानी खरीदी कर सिंचाई करने पर मजबूर हुए है । कई बाँध पानी रोको अभियान जैसी मुहीम चलाने पर हमने पाया की भूजल वर्धन के लिए नए संसाधन बाज़ार में आए और व्यावसायिक गतिविधि से प्रभावित हमारे प्रशासकों ने कमाई से प्रेरित होकर रूचि ली। अब नगर पालिका और निगम इन जल संयंत्र धारक व्यक्तियों को संपत्ति कर में छूट के प्रावधान देकर इसे अधिक संख्या में लगवाने की प्रेरणा का अलख जगा रहे है ।
पानी का प्रबंध कितना जरूरी है इसका नजारा हमें टैंकरों से बहते पानी को देख कर सहज ही हो जाया करता है । और इन टैंकरों पर बड़े अक्षरों में जल ही जीवन है , इसे बचाईये जैसे नारे लिख कर मुह चीढाया जाता रहा है । पानी का जो संकट अब नई परिभाषाये लेकर स्समने आएगा उसमे पानी बचाते लोग इन टैंकरों के पीछे ढुलकती हर बूँद को बचाने हेतु दौड़ते दिखाए जायेंगे और प्रेस फोटोग्राफर इन चित्रों को शान से अखबारों की सुर्ख्हियाँ बनाकर गौरान्वित होकर अपनी डींगे हांकते मिलेंगे । कोई बड़ी बात नही जल संवेदनाओं के इन चित्रों के लिए किसी अखबार में छपे फोटो को हमारी सरकार पुरुस्कृत कर देवे ।
इन सारी गंभीर बातों के बाद भी हमारा इंसान नही सुधरेगा । वो नेताओं को ताने देता आया है देता रहेगा । सरकार बदल डालने में पानी का संकट महत्वपूर्ण भुमिका बनेगा जैसी भविष्यवाणियां करते कई ज्योतिष विद्वान अपनी चेतावनियाँ देंगे । अंत में ढ़ाक के वही तीन पात जब तक कोई कार्य योजना बनेगी बारिश का पानी घरों में घुस चुका होगा ड्रेनेज सिस्टम की अव्यवस्था से ।
जल प्रबंध के जानकार अपनी रूचि से नई मोडिफईड तकनीकों के लिए शासन से कागजी खर्च की दरकार करेंगे।
और पानी के व्यवसायी अपनी चांदी काटेंगे मगर रोजाना पानी के प्रदुषण में आने वाली किसी कमी के बाजूद इंसान न तो सुधरा है और न ही किसी प्रकार की गुंजाईश ही है ।

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