Thursday, February 5, 2009

पानी की कमी से प्रभावित हो चला मध्य प्रदेश

पिछले दिनों जल संग्रहण हेतु अनेको उपायों के बावजूद आज मध्य प्रदेश पानी की किल्लत से परेशान हो उठा है। आज प्रदेश के कई जिले सूखे की चपेट में हैं जिनमे कही दो दिन कहीं तीन दिन तो कुछ जगहों पर तो पाँच से सात दिनों तक जल प्रदाय नही होगा । इंदौर ने जल आपातकाल लगा दिया है ।
यह सारी खबरें अब अखबारों की सुर्खियाँ बनने लगी हैं। अभी गर्मी के दिन आने शेष हैं जो भीषण परिस्थितियों से साक्षात्कार करायेंगे। धरती पर पानी की कमी पहले से रही है मात्र २ प्रतिशत पानी ही पिने के योग्य माना गया है। हमारे संसाधनों के नियमित उपयोग ने हमें रोज जमीन के भीतर या कहे भूगर्भ से पानी खिंच लेने की ताकत क्या दी हम उतावले बने और आज ६०० फुट नीचे से पानी खिंच कर मस्त हो रहे हैं। बरसात पर हमारी निर्भरता कितनी है यह सहज ही मालूम होती है की इस बार हमेशा से आधी हुई बारिश ने प्रदेश भर के कई जिलों को प्यास से तड़पा कर रख देना है ।
इंसान की करतूत देखें आज सिंचित क्षेत्र बढ़ाने के लिए जमीन को छेद देने में कोई कसर नही है । पहले जितने रकबे में इंसान गेहू चना लगाता था , तरक्की कर अब उतनी जमीन पर वह पशु चारा उपजाता है ।
जंगली पशुओं के रहवास नष्ट कर दिए वहाँ अब पशु चराई कराई जाना कोई नई बात नही है । वोट की राजनीति कुछ इस कदर हावी हुई है की हमें सिर्फ़ और सिर्फ़ इंसान की सुविध्हओं से मतलब रहा है ।
उदाहरण प्रस्तुत करूँ तो रतलाम मंदसौर नीमच उज्जैन जैसे नगरों में प्रतिदिन औसतन ६० से ७० लाख गेलन पानी नालों के मध्यम से भेजा जाता है । और इसे दुरुस्त करूँ तो लगभग इस भेजे जाने वाले पानी का ९० प्रतिशत रोजाना प्रदूषित भी किया जाता है । पानी के संकट को आबादी का प्रेशर मानने वाले जन प्रतिनिधि आज तक वाटर मेनेजमेंट की थाह नही पा सके । इसका मतलब उन लोगों की निगाह में सिर्फ़ इतना भर है की जस तस् लोगों को सुविधा मिले और बरसात में घरों में घुसने वाली पीड़ा से निजात का दिखावा , गर्मी में टैंकर से किसी मुहल्ले में पानी भेजकर वोटों के बदले परोसे इस महान उपकार की दुहाई आदि।
जल के प्रबंध के लिए सतह पर जल का पड़े रहना कितना जरूरी है इस बारे में ताल तलैया के निर्माण की सिफारिश रही , बड़ा बवेला मचा लेकिन आज किए गए कामों पर से परदा उठ सा गया है।
नदियों के उद्गम स्थलों के रख रखाव ठीक से नही हुए । मध्य प्रदेश से निकलने वाली नर्मदा, चम्बल, क्षिप्रा, गंभीर, माही, सोन के बावजूद प्रदेश प्यासा है तो हमारी कार्य प्रणाली में निश्चित ही कमी है। हमें जल प्रबंध के सिद्धांतो पर नजर डालनी होगी वरना प्यासी धरती प्यासे लोग अनपेक्षित कदमों को धारण किए होंगे ।
मैंने शब्द लिखा "जल प्रबध" हो सकता है यह किताबों में पढने की विषय वास्तु बन बैठे । हकीकत तो यह है की हम निठल्ले बैठे रहना पसंद करने लगे है और अच्छे जानकार होने का दंभ भरते हों मगर समय की दावत है पानी के रख रखाव पर कुछ कर लेवें ।

Wednesday, February 4, 2009

Wake up My dear

Its time to join network of blogging.
now you should get ready to work something for your environment.

Monday, February 2, 2009

newly started blog for wild life

hi there
everybody
birds watching group has started the blog to give you the moods from the jungle